अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च प्रमादो मोह एव च ।
तमस्येतानि जायन्ते विवृद्धे कुरुनन्दन ॥ १३ ॥
शब्दार्थ
अप्रकाशः - अँधेरा; अप्रवृत्तिः - निष्क्रियता; च - तथा; प्रमादः - पागलपन; मोहः - मोह; एव - निश्चय ही; च - भी; तमसि - तमोगुण; एतानि - ये; जायन्ते - प्रकट होते हैं; विवृद्धे - बढ़ जाने पर; कुरु-नन्दन - हे कुरुपुत्र ।
भावार्थ
जब तमोगुण में वृद्धि हो जाती है, तो हे कुरुपुत्र! अँधेरा, जड़ता, प्रमत्तता तथा मोह का प्राकट्य होता है ।
तात्पर्य
जहाँ प्रकाश नहीं होता, वहाँ ज्ञान अनुपस्थित रहता है । तमोगुणी व्यक्ति किसी नियम में बँधकर कार्य नहीं करता । वह अकारण ही अपनी सनक के अनुसार कार्य करना चाहता है । यद्यपि उसमें कार्य करने की क्षमता होती है, किन्तु वह परिश्रम नहीं करता । यह मोह कहलाता है । यद्यपि चेतना रहती है, लेकिन जीवन निष्क्रिय रहता है । ये तमोगुण के लक्षण हैं ।