सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते ।
ज्ञानं यदा तदा विद्याद्विवृद्धं सत्त्वमित्युत ॥ ११ ॥
शब्दार्थ
सर्व-द्वारेषु - सारे दरवाजों में; देहे अस्मिन् - इस शरीर में; प्रकाशः - प्रकाशित करने का गुण; उपजायते - उत्पन्न होता है; ज्ञानम् - ज्ञान; यदा - जब; तदा - उस समय; विद्यात् - जानो; विवृद्धम - बढ़ा हुआ; सत्त्वम् - सतोगुण; इति उत - ऐसा कहा गया है ।
भावार्थ
सतोगुण की अभिव्यक्ति को तभी अनुभव किया जा सकता है, जब शरीर के सारे द्वार ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित होते हैं ।
तात्पर्य
शरीर में नौ द्वार हैं - दो आँखें, दो कान, दो नथुने, मुँह, गुदा तथा उपस्थ । जब प्रत्येक द्वार सत्त्व के लक्षण से दीपित हो जायें, तो समझना चाहिए कि उसमें सतोगुण विकसित हो चुका है । सतोगुण में सारी वस्तुएँ अपनी सही स्थिति में दिखती हैं, सही-सही सुनाई पड़ता है और सही ढंग से उन वस्तुओं का स्वाद मिलता है । मनुष्य का अन्तः तथा बाह्य शुद्ध हो जाता है । प्रत्येक द्वार में सुख के लक्षण उत्पन्न दिखते हैं और यही स्थिति होती है सत्त्वगुण की ।