वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः
प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च ।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः
पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ॥ ३९ ॥
शब्दार्थ
वायुः - वायु; यमः - नियन्ता; अग्निः - अग्नि; वरुणः - जल; शश-अङ्कः - चन्द्रमा; प्रजापतिः - ब्रह्मा; त्वम् - आप; प्र-पितामहः - परबाबा; च - तथा; नमः - मेरा नमस्कार; नमः - पुनः नमस्कार; ते - आपको; अस्तु - हो; सहस्त्र-कृत्वः- हजार बार; पुनः च - तथा फिर; भूयः - फिर; अपि - भी; नमः - नमस्कार; नमः-ते - आपको मेरा नमस्कार है ।
भावार्थ
आप वायु हैं तथा परम नियन्ता भी हैं । आप अग्नि हैं, जल हैं तथा चन्द्रमा हैं । आप आदि जीव ब्रह्मा हैं और आप प्रपितामह हैं । अतः आपको हजार बार नमस्कार है और पुनःपुनः नमस्कार है ।
तात्पर्य
भगवान् को वायु कहा गया है, क्योंकि वायु सर्वव्यापी होने के कारण समस्त देवताओं का मुख्य अधिष्ठाता है । अर्जुन कृष्ण को प्रपितामह (परबाबा) कहकर सम्बोधित करता है, क्योंकि वे विश्व के प्रथम जीव ब्रह्मा के पिता हैं ।