अमी हि त्वां सुरसङ्घा विशन्ति
केचिद्भीताः प्राञ्जलयो गृणन्ति ।
स्वस्तीत्युक्त्वा महर्षिसिद्धसङ्घाः
स्तुवन्ति त्वां स्तुतिभिः पुष्कलाभिः ॥ २१ ॥
शब्दार्थ
अमी – वे सब; हि – निश्चय ही; त्वाम् – आपको; सुर-सङघाः – देव समूह; विशन्ति – प्रवेश कर रहे हैं; केचित् – उनमें से कुछ; भीताः – भयवश; प्राञ्जलयः – हाथ जोड़े; गृणन्ति – स्तुति कर रहे हैं; स्वस्ति – कल्याण हो; इति – इस प्रकार; महा-ऋषि – महर्षिगण; सिद्ध-सङ्घाः – सिद्ध लोग; स्तुवन्ति – स्तुति कर रहे हैं; त्वाम् – आपकी; स्तुतिभिः – प्रार्थनाओं से; पुष्कलाभिः – वैदिक स्तोत्रों से ।
भावार्थ
देवों का सारा समूह आपकी शरण ले रहा है और आप में प्रवेश कर रहा है । उनमें से कुछ अत्यन्त भयभीत होकर हाथ जोड़े आपकी प्रार्थना कर रहे हैं । महर्षियों तथा सिद्धों के समूह “कल्याण हो” कहकर वैदिक स्तोत्रों का पाठ करते हुए आपकी स्तुति कर रहे हैं ।
तात्पर्य
समस्त लोकों के देवता विश्वरूप की भयानकता तथा प्रदीप्त तेज से इतने भयभीत थे कि वे रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे ।