दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता ।
यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः ॥ १२ ॥

शब्दार्थ

दिवि – आकाश में; सूर्य – सूर्य का; सहस्त्रस्य – हजारों; भवेत् – थे; युगपत् – एकसाथ; उत्थिता – उपस्थित; यदि – यदि; भाः – प्रकाश; सदृशी – के समान; सा – वह; स्यात् – हो; भासः – तेज; तस्य – उस; महात्मनः – परम स्वामी का ।

भावार्थ

यदि आकाश में हजारों सूर्य एकसाथ उदय हों, तो उनका प्रकाश शायद परमपुरुष के इस विश्वरूप के तेज की समता कर सके ।

तात्पर्य

अर्जुन ने जो कुछ देखा वह अकथ्य था, तो भी संजय धृतराष्ट्र को उस महान दर्शन का मानसिक चित्र उपस्थित करने का प्रयत्न कर रहा है । न तो संजय वहाँ था, न धृतराष्ट्र, किन्तु व्यासदेव के अनुग्रह से संजय सारी घटनाओं को देख सकता है । अतएव इस स्थिति की तुलना वह एक काल्पनिक घटना (हजारों सूर्यों) से कर रहा है, जिससे इसे समझा जा सके ।