यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन ।
न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम् ॥ ३९ ॥
शब्दार्थ
यत् – जो; च – भी; अपि – हो सकता है; सर्व-भूतानाम् – समस्त सृष्टियों में; बीजम् – बीज; तत् – वह; अहम् – मैं हूँ; अर्जुन – हे अर्जुन; न – नहीं; तत् – वह; अस्ति – है; विना – रहित; यत् – जो; स्यात् – हो; मया – मुझसे; भूतम् – जीव; चर-अचरम् – जंगम तथा जड़ ।
भावार्थ
यही नहीं, हे अर्जुन! मैं समस्त सृष्टि का जनक बीज हूँ । ऐसा चर तथा अचर कोई भी प्राणी नहीं है, जो मेरे बिना रह सके ।
तात्पर्य
प्रत्येक वस्तु का कारण होता है और इस सृष्टि का कारण या बीज कृष्ण हैं । कृष्ण की शक्ति के बिना कुछ भी नहीं रह सकता, अतः उन्हें सर्वशक्तिमान कहा जाता है । उनकी शक्ति के बिना चर तथा अचर, किसी भी जीव का अस्तित्व नहीं रह सकता । जो कुछ कृष्ण की शक्ति पर आधारित नहीं है, वह माया है अर्थात् “वह जो नहीं है ।”