प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम् ।
मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम् ॥ ३० ॥
शब्दार्थ
प्रह्लादः – प्रह्लाद; च – भी; अस्मि – हूँ; दैत्यानाम् – असुरों में; कालः – काल; कलयताम् – दमन करने वालों में; अहम् – मैं हूँ; मृगाणाम् – पशुओं में; च – तथा; मृग-इन्द्रः – सिंह; अहम् – मैं हूँ; वैनतेयः – गरुड़; च – भी; पक्षिणाम् – पक्षियों में ।
भावार्थ
दैत्यों में मैं भक्तराज प्रह्लाद हूँ, दमन करने वालों में काल हूँ, पशुओं में सिंह हूँ, तथा पक्षियों में गरुड़ हूँ ।
तात्पर्य
दिति तथा अदिति दो बहनें थीं । अदिति के पुत्र आदित्य कहलाते हैं और दिति के दैत्य । सारे आदित्य भगवद्भक्त निकले और सारे दैत्य नास्तिक । यद्यपि प्रह्लाद का जन्म दैत्य कुल में हुआ था, किन्तु वे बचपन से ही परम भक्त थे । अपनी भक्ति तथा दैवी गुण के कारण वे कृष्ण के प्रतिनिधि माने जाते हैं ।
दमन के अनेक नियम हैं, किन्तु काल इस संसार की हर वस्तु को क्षीण कर देता है, अतः वह कृष्ण का प्रतिनिधित्व कर रहा है । पशुओं में सिंह सबसे शक्तिशाली तथा हिंस्र होता है और पक्षियों के लाखों प्रकारों में भगवान् विष्णु का वाहन गरुड़ सबसे महान है ।