आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक् ।
प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः ॥ २८ ॥

शब्दार्थ

आयुधानाम् – हथियारों में; अहम् – मैं हूँ; वज्रम् – वज्र; धेनूनाम् – गायों में; अस्मि – मैं हूँ; काम-धुक् – सुरभि गाय; प्रजनः – संतान, उत्पत्ति का कारण; – तथा; कन्दर्पः – कामदेव; सर्पाणाम् – सर्पों में; अस्मि – हूँ; वासुकिः – वासुकि ।

भावार्थ

मैं हथियारों में वज्र हूँ, गायों में सुरभि, सन्तति उत्पत्ति के कारणों में प्रेम का देवता कामदेव तथा सपों में वासुकि हूँ ।

तात्पर्य

वज्र सचमुच अत्यन्त बलशाली हथियार है और यह कृष्ण की शक्ति का प्रतीक है । वैकुण्ठलोक में स्थित कृष्णलोक की गाएँ किसी भी समय दुही जा सकती हैं और उनसे जो जितना चाहे उतना दूध प्राप्त कर सकता है । निस्सन्देह इस जगत् में ऐसी गाएँ नहीं मिलती, किन्तु कृष्णलोक में इनके होने का उल्लेख है । भगवान् ऐसी अनेक गाएँ रखते हैं, जिन्हें सुरभि कहा जाता है । कहा जाता है कि भगवान् ऐसी गायों के चराने में व्यस्त रहते हैं । कन्दर्प काम वासना है, जिससे अच्छे पुत्र उत्पन्न होते हैं । कभीकभी केवल इन्द्रियतृप्ति के लिए संभोग किया जाता है, किन्तु ऐसा संभोग कृष्ण का प्रतीक नहीं है । अच्छी सन्तान की उत्पत्ति के लिए किया गया संभोग कन्दर्प कहलाता है और वह कृष्ण का प्रतिनिधि होता है ।