अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः ।
गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः ॥ २६ ॥
शब्दार्थ
अश्वत्थः – अश्वत्थ वृक्ष; सर्व-वृक्षाणाम् – सारे वृक्षों में; देव-ऋषिणाम् – समस्त देवर्षियों में; च – तथा; नारदः – नारद; गन्धर्वाणाम् – गन्धर्वलोक के वासियों में; चित्ररथः – चित्ररथ; सिद्धानाम् – समस्त सिद्धि प्राप्त हुओं में; कपिलः-मुनिः – कपिल मुनि ।
भावार्थ
मैं समस्त वृक्षों में अश्वत्थ वृक्ष हूँ और देवर्षियों में नारद हूँ । मैं गन्धर्वों में चित्ररथ हूँ और सिद्ध पुरुषों में कपिल मुनि हूँ ।
तात्पर्य
अश्वत्थ वृक्ष सबसे ऊँचा तथा सुन्दर वृक्ष है, जिसे भारत में लोग नित्यप्रति नियमपूर्वक पूजते हैं । देवताओं में नारद विश्वभर के सबसे बड़े भक्त माने जाते हैं और पूजित होते हैं । इस प्रकार वे भक्त के रूप में कृष्ण के स्वरूप हैं । गन्धर्वलोक ऐसे निवासियों से पूर्ण है, जो बहुत अच्छा गाते हैं, जिनमें से चित्ररथ सर्वश्रेष्ठ गायक है । सिद्ध पुरुषों में से देवहूति के पुत्र कपिल मुनि कृष्ण के प्रतिनिधि हैं । वे कृष्ण के अवतार माने जाते हैं । इनका दर्शन भागवत में उल्लिखित है । बाद में भी एक अन्य कपिल प्रसिद्ध हुए, किन्तु वे नास्तिक थे, अतः इन दोनों में महान अन्तर है ।