मधुराष्टकम् (अधरं मधुरं वदनं मधुरं)


अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम् ।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ १ ॥

(हे श्रीकृष्ण!) आपके होंठ मधुर हैं, आपका मुख मधुर है, आपकी आंखें मधुर हैं, आपकी मुस्कान मधुर है,

आपका हृदय मधुर है, आपकी चाल भी मधुर है, मधुरता के ईश्वर श्रीकृष्ण! आप सभी प्रकार से मधुर हैं ॥ १ ॥

वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरम् ।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ २ ॥

आपके वचन मधुर है, आपका चरित्र मधुर हैं, आपके वस्त्र मधुर हैं, आपका तिरछा खड़ा होना भी मधुर है,

आपका चलना मधुर है, आपका भ्रमण (घूमना) मधुर है, मधुरता के ईश्वर श्रीकृष्ण! आप सभी प्रकार से मधुर हैं ॥ २ ॥

वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ ३ ॥

आपकी बांसुरी मधुर है, आपके चरणरज मधुर है (उनको चढ़ाये हुए फूल मधुर हैं), आपके हाथ मधुर हैं, आपके चरण मधुर हैं,

आपका नृत्य मधुर है, आपकी मित्रता मधुर है, मधुरता के ईश्वर श्रीकृष्ण! आप सभी प्रकार से मधुर हैं ॥ ३ ॥

गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम् ।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ ४ ॥

आपके गीत मधुर हैं, आपका पीना मधुर है, आपका खाना मधुर है, आपका सोना मधुर है,

आपका रूप मधुर है, आपका टीका मधुर है, मधुरता के ईश्वर श्रीकृष्ण! आप सभी प्रकार से मधुर हैं ॥ ४ ॥

करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरम् ।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ ५ ॥

आपके कार्य मधुर हैं, आपका तारना मधुर है (दुःखों से तारना, उद्धार करना) मधुर है, आपका चोरी करना मधुर है, आपका प्रेम करना मधुर है,

आपके शब्द मधुर हैं, आपका शांत रहना मधुर है, मधुरता के ईश्वर श्रीकृष्ण! आप सभी प्रकार से मधुर हैं ॥ ५ ॥

गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा ।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ ६ ॥

आपकी गुंजा (घुंघची या रत्ती) मधुर है, आपकी माला मधुर है, आपकी यमुना मधुर है, यमुना की लहरें मधुर हैं,

यमुना का पानी मधुर है, यमुना के कमल मधुर हैं, मधुरता के ईश्वर श्रीकृष्ण! आप सभी प्रकार से मधुर हैं ॥ ६ ॥

गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम् ।
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ ७ ॥

आपकी गोपियां मधुर हैं, आपकी लीला मधुर है, उनके साथ आप मधुर हैं, उनका उद्धार (बचाव) करना मधुर है,

आपका देखना मधुर है, आपका शिष्टाचार मधुर है, मधुरता के ईश्वर श्रीकृष्ण! आप सभी प्रकार से मधुर हैं ॥ ७ ॥

गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा ।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ ८ ॥

आपके गोप मधुर हैं, आपकी गायें मधुर हैं, आपकी छड़ी मधुर है, आपकी सृष्टि मधुर है,

आपका दलन (विनाश करना) मधुर है, आपकी सिद्धि (आपका वर देना) मधुर है, मधुरता के ईश्वर श्रीकृष्ण! आप सभी प्रकार से मधुर हैं ॥ ८ ॥


“मधुराष्टकम” संस्कृत में लिखा गया एक अष्टक है, जिसकी रचना संत श्रीवल्लभाचार्य जी (१४७९-१५३१) ने की है । श्री वल्लभाचार्य एक तेलुगु ब्राह्मण थे जिन्होंने पुष्टिमार्ग का प्रचार किया, जो शुद्धाद्वैत दर्शन पर आधारित है और कृष्ण की भक्ति और सेवा पर जोर देता है ।

मधुराष्टकम् में श्रीवल्लभाचार्य जी ने बालरूप श्रीकृष्ण की मधुरता का मधुरतम वर्णन किया है । श्रीकृष्ण के प्रत्येक अंग एवं गतिविधि मधुर है और उनके संयोग से अन्य सजीव और निर्जीव वस्तुएं भी मधुरता को प्राप्त कर लेती हैं । इस सृष्टि में जो कुछ भी मधुरता है उसको श्रीकृष्ण की मधुरता का एक अंश समझते हुए भक्तों को निरंतर श्रीकृष्ण का स्मरण करना चाहिए ।