अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम् ।
एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम् ॥ ४२ ॥
शब्दार्थ
अथवा – या; योगिनाम् – विद्वान योगियों के; एव – निश्चय ही; कुले – परिवार में; भवति – जन्म लेता है; धि-मताम् – परम बुद्धिमानों के; एतत् – यह; हि – निश्चय ही; दुर्लभ-तरम् – अत्यन्त दुर्लभ; लोके – इस संसार में; जन्म – जन्म; यत् – जो; ईदृशम् – इस प्रकार का ।
भावार्थ
अथवा (यदि दीर्घकाल तक योग करने के बाद असफल रहे तो) वह ऐसे योगियों के कुल में जन्म लेता है जो अति बुद्धिमान हैं । निश्चय ही इस संसार में ऐसा जन्म दुर्लभ है ।
तात्पर्य
यहाँ पर योगियों के बुद्धिमान कुल में जन्म लेने की प्रशंसा की गई है क्योंकि ऐसे कुल में उत्पन्न बालक को प्रारम्भ से ही आध्यात्मिक प्रोत्साहन प्राप्त होता है । विशेषतया आचार्यों या गोस्वामियों के कुल में ऐसी परिस्थिति है । ऐसे कुल अत्यन्त विद्वान् होते हैं और परम्परा तथा प्रशिक्षण के कारण श्रद्धावान होते हैं । इस प्रकार वे गुरु बनते हैं । भारत में ऐसे अनेक आचार्य कुल हैं, किन्तु अब वे अपर्याप्त विद्या तथा प्रशिक्षण के कारण पतनशील हो चुके हैं । भगवत्कृपा से अभी भी कुछ ऐसे परिवार हैं जिनमें पीढ़ी-दर-पीढ़ी योगियों को प्रश्रय मिलता है । ऐसे परिवारों में जन्म लेना सचमुच ही अत्यन्त सौभाग्य की बात है । सौभाग्यवश हमारे गुरु विष्णुपाद श्री श्रीमद्भक्तिसिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी महाराज को तथा स्वयं हमें भी ऐसे परिवारों में जन्म लेने का अवसर प्राप्त हुआ । हम दोनों को बचपन से ही भगवद्भक्ति करने का प्रशिक्षण दिया गया । बाद में दिव्य व्यवस्था के अनुसार हमारी उनसे भेंट हुई ।