प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते ।
प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते ॥ ६५ ॥

शब्दार्थ

प्रसादे – भगवान् की अहैतुकी कृपा प्राप्त होने पर; सर्व – सभी; दुःखानाम् – भौतिक दुखों का; हानिः – क्षय, नाश; अस्य – उसके; उपजायते – होता है; प्रसन्न-चेतसः – प्रसन्नचित्त वाले की; हि – निश्चय ही; आशु – तुरन्त; बुद्धिः – बुद्धि; परि – पर्याप्त; अवतिष्ठते – स्थिर हो जाती है ।

भावार्थ

इस प्रकार से कृष्णभावनामृत में तुष्ट व्यक्ति के लिए संसार के तीनों ताप नष्ट हो जाते हैं और ऐसी तुष्ट चेतना होने पर उसकी बुद्धि शीघ्र ही स्थिर हो जाती है ।