स्वभावजेन कौन्तेय निबद्धः स्वेन कर्मणा ।
कर्तुं नेच्छसि यन्मोहात्करिष्यस्यवशोऽपि तत् ॥ ६० ॥
शब्दार्थ
स्वभाव-जेन - अपने स्वभाव से उत्पन्न; कौन्तेय - हे कुन्तीपुत्र; निबद्धः - बद्ध; स्वेन - तुम अपने; कर्मणा - कार्यकलापों से; कर्तुम् - करने के लिए; न - नहीं; इच्छसि - इच्छा करते हो; यत् - जो; मोहात् - मोह से; करिष्यसि - करोगे; अवशः - अनिच्छा से; अपि - भी; तत् - वह ।
भावार्थ
इस समय तुम मोहवश मेरे निर्देशानुसार कर्म करने से मना कर रहे हो । लेकिन हे कुन्तीपुत्र! तुम अपने ही स्वभाव से उत्पन्न कर्म द्वारा बाध्य होकर वही सब करोगे ।
तात्पर्य
यदि कोई परमेश्वर के निर्देशानुसार कर्म करने से मना करता है, तो वह उन गुणों द्वारा कर्म करने के लिए बाध्य होता है, जिनमें वह स्थित होता है । प्रत्येक व्यक्ति प्रकृति के गुणों के विशेष संयोग के वशीभूत है और तदनुसार कर्म करता है । किन्तु जो स्वेच्छा से परमेश्वर के निर्देशानुसार कार्यरत होता है, वही गौरवान्वित होता है ।