न तदस्ति पृथिव्यां वा दिवि देवेषु वा पुनः ।
सत्त्वं प्रकृतिजैर्मुक्तं यदेभिः स्यात्त्रिभिर्गुणैः ॥ ४० ॥
शब्दार्थ
न – नहीं; तत् – वह; अस्ति – है; पृथिव्याम् – पृथ्वी पर; वा – अथवा; दिवि – उच्चतर लोकों में; देवेषु – देवताओं में; वा – अथवा; पुनः – फिर; सत्त्वम् – अस्तित्व; प्रकृति-जैः – प्रकृति से उत्पन्न; मुक्तम् – मुक्त; यत् – जो; एभिः – इनके प्रभाव से; स्वात् – हो; त्रिभिः – तीन; गुणैः – गुणों से ।
भावार्थ
इस लोक में, स्वर्ग लोकों में या देवताओं के मध्य में कोई भी ऐसा व्यक्ति विद्यमान नहीं है, जो प्रकृति के तीन गुणों से मुक्त हो ।
तात्पर्य
भगवान् इस श्लोक में समग्र ब्रह्माण्ड में प्रकृति के तीन गुणों के प्रभाव का संक्षिप्त विवरण दे रहे हैं ।