एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धयः ।
प्रभवन्त्युग्रकर्माणः क्षयाय जगतोऽहिताः ॥ ९ ॥

शब्दार्थ

एताम् - इस; दृष्टिम् - दृष्टि को; अवष्टभ्य - स्वीकार करके; नष्ट - खोकर; आत्मानः - अपने आप; अल्प-बुद्धयः - अल्पज्ञानी; प्रभवन्ति - फूलते-फलते हैं; उग्र-कर्माणः - कष्ट कारक कर्मों में प्रवृत्त; क्षयाय - विनाश के लिए; जगतः - संसार का; अहिताः - अनुपयोगी ।

भावार्थ

ऐसे निष्कर्षों का अनुगमन करते हुए आसुरी लोग, जिन्होंने आत्म-ज्ञान खो दिया है और जो बुद्धिहीन हैं, ऐसे अनुपयोगी एवं भयावह कार्यों में प्रवृत्त होते हैं जो संसार का विनाश करने के लिए होता है ।

तात्पर्य

आसुरी लोग ऐसे कार्यों में व्यस्त रहते हैं जिनसे संसार का विनाश हो जाये । भगवान् यहाँ कहते हैं कि वे कम बुद्धि वाले हैं । भौतिकवादी, जिन्हें ईश्वर का कोई बोध नहीं होता, सोचते हैं कि वे प्रगति कर रहे हैं । लेकिन भगवद्गीता के अनुसार वे बुद्धिहीन तथा समस्त विचारों से शून्य होते हैं । वे इस भौतिक जगत् का अधिक से अधिक भोग करने का प्रयत्न करते हैं, अतएव इन्द्रियतृप्ति के लिए वे कुछ न कुछ नया आविष्कार करते रहते हैं । ऐसे भौतिक आविष्कारों को मानवसभ्यता का विकास माना जाता है, लेकिन इसका दुष्परिणाम यह होता है कि लोग अधिकाधिक हिंसक तथा क्रूर होते जाते हैं - वे पशुओं के प्रति क्रूर हो जाते हैं और अन्य मनुष्यों के प्रति भी । उन्हें इसका कोई ज्ञान नहीं कि एक दूसरे से किस प्रकार व्यवहार किया जाय । आसुरी लोगों में पशुवध अत्यन्त प्रधान होता है । ऐसे लोग संसार के शत्रु समझे जाते हैं, क्योंकि वे अन्ततः ऐसा आविष्कार कर लेंगे या कुछ ऐसी सृष्टि कर देंगे जिससे सबका विनाश हो जाय । अप्रत्यक्षतः यह श्लोक नाभिकीय अस्त्रों के आविष्कार की पूर्व सूचना देता है, जिसका आज सारे विश्व को गर्व है । किसी भी क्षण युद्ध हो सकता है और ये परमाणु हथियार विनाशलीला उत्पन्न कर सकते हैं । ऐसी वस्तुएँ संसार के विनाश के उद्देश्य से ही उत्पन्न की जाती हैं और यहाँ पर इसका संकेत किया गया है । ईश्वर के प्रति अविश्वास के कारण ही ऐसे हथियारों का आविष्कार मानव समाज में किया जाता है - वे संसार की शान्ति तथा सम्पन्नता के लिए नहीं होते ।