गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा ।
पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः ॥ १३ ॥

शब्दार्थ

गाम् - लोक में; आविष्य - प्रवेश करके; - भी; भूतानि - जीवों का; धारयामी - धारण करता हूँ; अहम् - मैं; ओजस - अपनी शक्ति से; पुष्णामि - पोषण करता हूँ; - तथा; औषधिः - वनस्पतियों का; सर्वाः - समस्त; सोमः - चन्द्रमा; भूत्वा - बनकर; रस-आत्मकः - रस प्रदान करने वाला ।‌‌‌

भावार्थ

मैं प्रत्येक लोक में प्रवेश करता हूँ और मेरी शक्ति से सारे लोक अपनी कक्षा में स्थित रहते हैं । मैं चन्द्रमा बनकर समस्त वनस्पतियों को जीवन-रस प्रदान करता हूँ ।

तात्पर्य

ऐसा ज्ञात है कि सारे लोक केवल भगवान् की शक्ति से वायु में तैर रहे हैं । भगवान् प्रत्येक अणु, प्रत्येक लोक तथा प्रत्येक जीव में प्रवेश करते हैं । इसकी विवेचना ब्रह्मसंहिता में की गई है । उसमें कहा गया है - परमेश्वर का एक अंश, परमात्मा, लोकों में, ब्रह्माण्ड में, जीव में तथा अणु तक में प्रवेश करता है । अतएव उनके प्रवेश करने से प्रत्येक वस्तु ठीक से दिखती है । जब आत्मा होता है तो जीवित मनुष्य पानी में तैर सकता है । लेकिन जब जीवित स्फुलिंग इस देह से निकल जाता है और शरीर मृत हो जाता है तो शरीर डूब जाता है । निस्सन्देह सड़ने के बाद यह शरीर तिनके तथा अन्य वस्तुओं के समान तैरता है । लेकिन मरने के तुरन्त बाद शरीर पानी में डूब जाता है । इसी प्रकार ये सारे लोक शून्य में तैर रहे हैं और यह सब उनमें भगवान् की परम शक्ति के प्रवेश के कारण है । उनकी शक्ति प्रत्येक लोक को उसी तरह थामे रहती है, जिस प्रकार धूल को मुट्ठी । मुट्ठी में बन्द रहने पर धूल के गिरने का भय नहीं रहता, लेकिन ज्योंही धूल को वाय में फेंक दिया जाता है, वह नीचे गिर पडती है । इसी प्रकार ये सारे लोक, जो वायु में तैर रहे हैं, वास्तव में भगवान् के विराट रूप की मुट्ठी में बँधे हैं । उनके बल तथा शक्ति से सारी चर तथा अचर वस्तुएँ अपने-अपने स्थानों पर टिकी हैं । वैदिक मन्त्रों में कहा गया है कि भगवान् के कारण सूर्य चमकता है और सारे लोक लगातार घूमते रहते हैं । यदि ऐसा उनके कारण न हो तो सारे लोक वायु में धूल के समान बिखर कर नष्ट हो जाएँ । इसी प्रकार से भगवान् के ही कारण चन्द्रमा समस्त वनस्पतियों का पोषण करता है । चन्द्रमा के प्रभाव से सब्जियाँ सुस्वादु बनती हैं । चन्द्रमा के प्रकाश के बिना सब्जियाँ न तो बढ़ सकती हैं और न स्वादिष्ट हो सकती हैं । वास्तव में मानवसमाज भगवान् की कृपा से काम करता है, सुख से रहता है और भोजन का आनन्द लेता है । अन्यथा मनुष्य जीवित न रहता । रसात्मकः शब्द अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । प्रत्येक वस्तु चन्द्रमा के प्रभाव से परमेश्वर के द्वारा स्वादिष्ट बनती है ।