सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः ।
तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता ॥ ४ ॥
शब्दार्थ
सर्व-योनिषु - समस्त योनियों में; कौन्तेय - हे कुन्तीपुत्र; मूर्तयः - स्वरूप; सम्भवन्ति - प्रकट होते हैं; याः - जो; तासाम् - उन सबों का; ब्रह्म - परम; महत् योनिः - जन्म स्त्रोत; अहम् - मैं; बीज-प्रदः - बीजप्रदाता; पिता - पिता ।
भावार्थ
हे कुन्तीपुत्र! तुम यह समझ लो कि समस्त प्रकार की जीव-योनियाँ इस भौतिक प्रकृति में जन्म द्वारा सम्भव हैं और मैं उनका बीज-प्रदाता पिता हूँ ।
तात्पर्य
इस श्लोक में स्पष्ट बताया गया है कि भगवान् श्रीकृष्ण समस्त जीवों के आदि पिता हैं । सारे जीव भौतिक प्रकृति तथा आध्यात्मिक प्रकृति के संयोग हैं । ऐसे जीव केवल इस लोक में ही नहीं, अपितु प्रत्येक लोक में, यहाँ तक कि सर्वोच्च लोक में भी, जहाँ ब्रह्मा आसीन हैं, पाये जाते हैं । जीव सर्वत्र हैं - पृथ्वी, जल तथा अग्नि के भीतर भी जीव हैं । ये सारे जीव माता भौतिक प्रकृति तथा बीजप्रदाता कृष्ण के द्वारा प्रकट होते हैं । तात्पर्य यह है कि भौतिक जगत् जीवों को गर्भ में धारण किये है, जो सृष्टिकाल में अपने पूर्वकर्मों के अनुसार विविध रूपों में प्रकट होते हैं ।