अर्जुन उवाच
कैर्लिङ्गैस्त्रीन्गुणानेतानतीतो भवति प्रभो ।
किमाचारः कथं चैतांस्त्रीन्गुणानतिवर्तते ॥ २१ ॥
शब्दार्थ
अर्जुनःउवाच - अर्जुन ने कहा; कैः - किन; लिङगैः - लक्षणों से; त्रीन् - तीनों; गुणान् - गुणों को; एतान् - ये सब; अतीतः - लाँघा हुआ; भवति - है; प्रभो - हे प्रभु; किम् - क्या; आचारः - आचरण; कथम् - कैसे; च - भी; एतान् - ये; त्रीन् - तीनों; गुणान् - गुणों को; अतिवर्तते - लाँघता है ।
भावार्थ
अर्जुन ने पूछा - हे भगवान्! जो इन तीनों गुणों से परे है, वह किन लक्षणों के द्वारा जाना जाता है ? उसका आचरण कैसा होता है ? और वह प्रकृति के गुणों को किस प्रकार लाँघता है ?
तात्पर्य
इस श्लोक में अर्जुन के प्रश्न अत्यन्त उपयुक्त हैं । वह उस पुरुष के लक्षण जानना चाहता है, जिसने भौतिक गुणों को लाँघ लिया है । सर्वप्रथम वह ऐसे दिव्य पुरुष के लक्षणों के विषय में जिज्ञासा करता है कि कोई कैसे समझे कि उसने प्रकृति के गुणों के प्रभाव को लाँघ लिया है ? उसका दूसरा प्रश्न है कि ऐसा व्यक्ति किस प्रकार रहता है और उसके कार्यकलाप क्या हैं ? क्या वे नियमित होते हैं, या अनियमित ? फिर अर्जुन उन साधनों के विषय में पूछता है, जिससे वह दिव्य स्वभाव (प्रकृति) प्राप्त कर सके । यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । जब तक कोई उन प्रत्यक्ष साधनों को नहीं जानता, जिनसे वह सदैव दिव्य पद पर स्थित रहे, तब तक लक्षणों के दिखने का प्रश्न ही नहीं उठता । अतएव अर्जुन द्वारा पूछे गये ये सारे प्रश्न अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं और भगवान् उनका उत्तर देते हैं ।