इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम् ।
मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टुमिच्छसि ॥ ७ ॥
शब्दार्थ
इह - इसमें; एक-स्थम् - एक स्थान में; जगत् - ब्रह्माण्ड; कृत्स्नम् - पूर्णतया; पश्य - देखो; अद्य - तुरन्त; स - सहित; चर - जंगम; अचरम् - तथा अचर, जड़; मम - मेरे; देहे - शरीर में; गुडाकेश - हे अर्जुन; यत् - जो; च - भी; अन्यत् - अन्य, और; द्रष्टुम् - देखना; इच्छसि - चाहते हो ।
भावार्थ
हे अर्जुन! तुम जो भी देखना चाहो, उसे तत्क्षण मेरे इस शरीर में देखो । तुम इस समय तथा भविष्य में भी जो भी देखना चाहते हो, उसको यह विश्वरूप दिखाने वाला है । यहाँ एक ही स्थान पर चर-अचर सब कुछ है ।
तात्पर्य
कोई भी व्यक्ति एक स्थान में बैठे-बैठे सारा विश्व नहीं देख सकता । यहाँ तक कि बड़े से बड़ा वैज्ञानिक भी यह नहीं देख सकता कि ब्रह्माण्ड के अन्य भागों में क्या हो रहा है । किन्तु अर्जुन जैसा भक्त यह देख सकता है कि सारी वस्तुएँ जगत् में कहाँ-कहाँ स्थित हैं । कृष्ण उसे शक्ति प्रदान करते हैं, जिससे वह भूत, वर्तमान तथा भविष्य, जो कुछ देखना चाहे, देख सकता है । इस तरह अर्जुन कृष्ण के अनुग्रह से सारी वस्तुएँ देखने में समर्थ है ।