श्री विष्णु मन्त्र (शान्ताकारं भुजगशयनं)


शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् ।

जिनकी आकृति अतिशय शांत है, जो शेषनाग की शैया पर शयन किए हुए हैं, जिनकी नाभि में कमल है, जो देवताओं के भी ईश्वर हैं, जो संपूर्ण जगत के आधार हैं, जो आकाश के सदृश सर्वत्र व्याप्त हैं, नीलमेघ के समान जिनका वर्ण है, अतिशय सुंदर जिनके संपूर्ण अंग हैं ।

लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥

ऐसे लक्ष्मीपति, जिनके नयन कमल के समान सुंदर हैं, योगी जिनको प्राप्त करने के लिए हमेशा ध्यानमग्न रहते हैं, ऐसे परब्रह्म श्री विष्णु को मेरा नमन है, जो जन्म-मरण रूप भय का नाश करने वाले हैं, जो संपूर्ण लोकों के स्वामी हैं ।